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Chapter notes
“अंतरिक्ष में एक भारतीय-अमेरिकी महिला: कल्पना चावला” पाठ कल्पना चावला की प्रेरणादायक जीवन-कथा बताता है। कल्पना चावला भारत में जन्म लेने वाली पहली महिला थीं जो अंतरिक्ष में गईं। कहानी की शुरुआत हरियाणा के करनाल शहर से होती है, जहाँ कल्पना का जन्म एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। बचपन से ही उन्हें आकाश और उड़ान के प्रति गहरा आकर्षण था। वे आसमान में उड़ते जहाजों को घंटों देखतीं और सोचतीं कि एक दिन वे भी उड़ेंगी। दूसरे बच्चे जहाँ सामान्य खेल खेलते थे, वहीं कल्पना का मन तारों, हवाई जहाजों और अंतरिक्ष की कल्पनाओं में रहता था। उनके सपने छोटे नहीं थे; वे आसमान को अपनी मंज़िल मानती थीं।
कल्पना ने करनाल में ही अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। वे पढ़ाई में मेहनती, जिज्ञासु और लक्ष्य के प्रति दृढ़ थीं। उन्होंने विज्ञान विषय चुने और एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग पढ़ने का निश्चय किया, जो विमान और उड़ान से जुड़ा क्षेत्र है। उन्होंने चंडीगढ़ के पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लिया। उस समय बहुत कम लड़कियाँ ऐसे कोर्स चुनती थीं, इसलिए कई लोग उनकी इच्छा पर संदेह करते थे। लेकिन कल्पना ने किसी की परवाह नहीं की। उन्होंने पूरे मन से पढ़ाई की और विमान विज्ञान की बारीकियाँ समझीं। पाठ यह दिखाता है कि उनका भविष्य किसी चमत्कार से नहीं, बल्कि कड़ी मेहनत और साहस से बना।
भारत से इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद कल्पना उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चली गईं। वहाँ उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री और फिर पीएचडी प्राप्त की। नए देश में जीवन आसान नहीं था, लेकिन कल्पना ने आत्मविश्वास के साथ अपने आप को ढाला। उन्होंने उड़ान और एरोडायनामिक्स से जुड़ा गहन शोध किया। उनकी प्रतिभा और ज्ञान ने उन्हें नासा (NASA) तक पहुँचाया। नासा में वैज्ञानिक के रूप में काम करना ही बहुत बड़ी उपलब्धि थी, पर कल्पना का सपना इससे भी आगे था। वे अंतरिक्ष यात्री बनना चाहती थीं और पृथ्वी से बाहर जाना चाहती थीं।
कल्पना ने नासा के अंतरिक्ष यात्री कार्यक्रम के लिए आवेदन किया और कड़ी चयन प्रक्रिया के बाद चुनी गईं। इसके बाद उन्हें बहुत कठिन प्रशिक्षण से गुजरना पड़ा। प्रशिक्षण में अंतरिक्ष यान की तकनीक, वैज्ञानिक प्रयोग, आपातकालीन परिस्थितियों में जीवित रहने की कला और शारीरिक क्षमता बढ़ाने वाले अभ्यास शामिल थे। अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए तेज़ बुद्धि, शांत मन, टीम-वर्क और अनुशासन जरूरी था। कल्पना ने हर चुनौती को धैर्य और मेहनत से पार किया, क्योंकि उनका सपना उनके लिए सबसे बड़ा प्रेरणा स्रोत था।
1997 में उनका सपना सच हुआ। वे स्पेस शटल कोलंबिया के मिशन STS-87 में “मिशन स्पेशलिस्ट” के रूप में अंतरिक्ष गईं। इस मिशन में कई वैज्ञानिक प्रयोग किए गए, जैसे गुरुत्वहीन वातावरण में द्रवों और पदार्थों का व्यवहार समझना तथा पृथ्वी का अध्ययन करना। कल्पना की यह उड़ान इतिहास बन गई, और वे दुनिया भर के छात्रों के लिए आदर्श बन गईं। पाठ में उनके शब्दों का उल्लेख है, जहाँ वे बच्चों से कहती हैं कि बड़े सपने देखो और उन्हें पूरा करने के लिए पूरी मेहनत करो।
अंतरिक्ष से सफलतापूर्वक लौटने के बाद भी कल्पना रुक नहीं गईं। वे दूसरी उड़ान की तैयारी में जुट गईं। 2003 में वे फिर कोलंबिया पर मिशन STS-107 के लिए अंतरिक्ष गईं। यह मिशन 16 दिनों तक चला और इसमें वातावरण, जैव-विज्ञान तथा भारहीनता में पदार्थों पर अनेक प्रयोग किए गए। चालक दल दिन-रात शोध में लगा रहा। वे जानते थे कि उनका काम भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों को आगे बढ़ाएगा।
दुर्भाग्य से 1 फरवरी 2003 को जब कोलंबिया पृथ्वी के वातावरण में वापस प्रवेश कर रहा था, तो वह टूटकर बिखर गया और सभी सात अंतरिक्ष यात्रियों सहित कल्पना चावला का भी निधन हो गया। यह घटना दुखद थी, लेकिन पाठ इसका मुख्य केंद्र नहीं बनाता। पाठ यह बताता है कि अंतरिक्ष यात्री मानव ज्ञान को बढ़ाने के लिए जोखिम उठाते हैं और कल्पना ने यह जोखिम साहस के साथ अपनाया।
कल्पना चावला का जीवन हमें गहरा संदेश देता है। उन्होंने एक छोटे भारतीय शहर से निकलकर दुनिया के सबसे ऊँचे वैज्ञानिक क्षेत्र तक पहुँच बनाई। उनकी सफलता शिक्षा, दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास का परिणाम थी। उनका जीवन यह सिखाता है कि सपने सच हो सकते हैं, बस उनके लिए संघर्ष और मेहनत जरूरी है। यह कहानी यह भी साबित करती है कि जन्म-स्थान या लिंग किसी भी व्यक्ति की क्षमता को सीमित नहीं कर सकता। कल्पना आज भी उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा हैं जो बड़े सपने देखने का साहस रखते हैं।