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Summary
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Chapter notes
“हू आई ऐम” (मैं कौन हूँ) एक अनोखा अध्याय है क्योंकि यह किसी एक कहानी की तरह नहीं है। यह अलग-अलग बच्चों के छोटे-छोटे आत्म-परिचय (self-portraits) का संग्रह है। हर बच्चा अपने स्वभाव, रुचियों, सपनों और कभी-कभी अपनी कमजोरियों के बारे में बताता है। इन सभी आत्म-परिचयों को पढ़कर एक बड़ा संदेश सामने आता है—हर इंसान अलग है, और यही अलग-अलग होना जीवन की सुंदरता है।
अध्याय की शुरुआत राधा से होती है। राधा बताती है कि उसे पेड़ चढ़ना, बाहर खेलना और खुली जगहों में समय बिताना पसंद है। वह साहसी और फुर्तीली है। लेकिन वह यह भी स्वीकार करती है कि कभी-कभी उसे छोटी-छोटी बातों से डर लग जाता है। राधा का परिचय यह सिखाता है कि किसी के व्यक्तित्व में केवल एक गुण नहीं होता। हम कुछ परिस्थितियों में निडर हो सकते हैं और कुछ में घबराए हुए—और यह बिल्कुल स्वाभाविक है। अपने बारे में सच-सच बताना आत्म-जागरूकता की पहचान है।
इसके बाद रोहित का परिचय आता है। रोहित को घूमना-फिरना, नई जगहें देखना और दुनिया को जानना पसंद है। वह पहाड़ों, समुद्रों और अलग-अलग संस्कृतियों को देखने का सपना देखता है। रोहित का चित्र यह दिखाता है कि कुछ बच्चे जन्म से ही जिज्ञासु और साहसी होते हैं। वे अपने छोटे दायरे में सीमित नहीं रहना चाहते, बल्कि अनुभवों से सीखना चाहते हैं। यह आत्मविश्वास और खुले मन का प्रतीक है।
फिर सरबजीत का परिचय मिलता है। उसे हाथों से चीजें बनाना, मॉडल तैयार करना, टूटी चीजों को ठीक करना और घर में सहायता करना अच्छा लगता है। वह खुद को उपयोगी मानता है और इस बात पर गर्व करता है कि वह काम करके मदद कर सकता है। सरबजीत का परिचय यह सिखाता है कि रचनात्मकता केवल चित्रकारी या लेखन में ही नहीं होती, बल्कि व्यावहारिक कामों में भी होती है। अलग-अलग कौशल भी उतने ही सम्मान योग्य हैं।
इसके बाद डोल्मा का परिचय आता है। डोल्मा को खेल-कूद बहुत पसंद है, खासकर दौड़ना। वह तेज़, चुस्त और प्रतियोगिता पसंद करने वाली लड़की है। उसके शब्दों से पता चलता है कि खेल केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि अनुशासन, मेहनत, टीम-वर्क और हार-जीत को स्वीकार करने की कला भी सिखाते हैं। डोल्मा का आत्म-विश्वास बच्चों को सक्रिय रहने और अपने लक्ष्य के लिए लगातार प्रयास करने की प्रेरणा देता है।
फिर नसीर का परिचय है। नसीर को बागवानी में बहुत आनंद आता है। वह बीज बोना, पानी देना और पौधों को बढ़ते देखना पसंद करता है। उसे प्रकृति के साथ समय बिताने से खुशी मिलती है। नसीर का परिचय बताता है कि कुछ बच्चों की पहचान धैर्य, देखभाल और शांत रुचियों से बनती है। उसकी खुशी यह भी सिखाती है कि साधारण लगने वाले शौक भी जीवन को अर्थ दे सकते हैं।
अध्याय में कुछ बच्चे अपने मन की भावनाओं के बारे में भी सच बताते हैं। कोई कहता है कि उसे कभी-कभी ईर्ष्या होती है जब दूसरों की तारीफ होती है। कोई बताता है कि कुछ समय वह अकेलापन महसूस करता है। ये छोटे स्वीकार-वाक्य अध्याय को वास्तविक बनाते हैं। इससे पता चलता है कि पहचान में अच्छाइयाँ और कमजोरियाँ दोनों शामिल होती हैं। अपनी कमजोरी मान लेना सुधार की पहली सीढ़ी है।
हर परिचय पढ़ते-पढ़ते यह बात स्पष्ट होती जाती है कि “अच्छा बच्चा” होने का एक ही तरीका नहीं है। हर बच्चा अपनी रुचि, संस्कृति, स्वभाव और सपनों के कारण अलग होता है। कोई यात्रा पसंद करता है, कोई खेल, कोई प्रकृति, कोई काम-काज। यह विविधता समाज को सुंदर बनाती है, न कि कमजोर। अध्याय बच्चों को आत्म-स्वीकृति सिखाता है—अपने गुणों पर गर्व करो और अपनी कमियों को सुधारने की कोशिश करो, बिना अपने आप को दूसरों से कम समझे।
अंत में “हू आई ऐम” पाठ एक दर्पण की तरह काम करता है। यह पाठक को सोचने पर मजबूर करता है: मुझे क्या पसंद है? मुझे किस बात से डर लगता है? मैं क्या बनना चाहता हूँ? मुझे अपनी कौन-सी आदत सुधारनी चाहिए? साथ ही यह भी सिखाता है कि जैसे हम खुद को स्वीकार करते हैं, वैसे ही हमें दोस्तों की अलग-अलग पहचान का भी सम्मान करना चाहिए। इस तरह अध्याय का मुख्य संदेश है—स्वयं को जानो, स्वयं को स्वीकार करो और दूसरों की विविधता का सम्मान करो।