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Chapter notes
“फेयर प्ले” एक प्रेरक कहानी है जो दोस्ती, न्याय और जिम्मेदारी से शक्ति के उपयोग के बारे में सिखाती है। इस कहानी के मुख्य पात्र जावेद और आलोक दो स्कूल के लड़के हैं, जो बहुत अच्छे दोस्त हैं। वे एक ही मोहल्ले में रहते हैं, एक ही स्कूल में पढ़ते हैं और शाम को साथ मिलकर क्रिकेट खेलते हैं। उनकी दोस्ती भरोसे और लंबे समय से साथ रहने पर आधारित है। शुरुआत में उनकी मित्रता मजबूत और सहज लगती है, लेकिन एक छोटी-सी गलतफहमी उनके रिश्ते की परीक्षा लेती है।
एक दिन मोहल्ले के लड़कों के बीच क्रिकेट मैच होता है। सभी बच्चे आलोक को अंपायर चुनते हैं, क्योंकि वे मानते हैं कि वह निष्पक्ष फैसला करेगा। जावेद दूसरी टीम में खेल रहा होता है। मैच रोमांचक बन जाता है और दोनों पक्ष जीतना चाहते हैं। एक महत्वपूर्ण मौके पर आलोक का निर्णय उसकी टीम के पक्ष में चला जाता है और जावेद की टीम हार जाती है। हार के तुरंत बाद कुछ लड़के आलोक पर आरोप लगाते हैं कि उसने अपनी टीम को जिताने के लिए पक्षपात किया। वे कहते हैं कि आलोक ने “फेयर प्ले” नहीं किया। आलोक को यह सुनकर बहुत दुख होता है, क्योंकि उसे लगता है कि उसने ईमानदारी से नियमों के अनुसार फैसला किया था। उस पर लगे आरोप उसके स्वाभिमान को चोट पहुँचाते हैं।
जावेद इस स्थिति में उलझ जाता है। वह हार से परेशान है और अपने साथियों की बातें सुनता है। वह आलोक का खुलकर समर्थन नहीं कर पाता, जिससे आलोक को लगता है कि जावेद ने उसका साथ नहीं दिया। दूसरी ओर जावेद भी मन ही मन सोचने लगता है कि शायद आलोक से गलती हुई हो। भावनाएँ हावी हो जाती हैं और दोनों के बीच तीखे शब्दों का आदान-प्रदान हो जाता है। इस छोटे विवाद से उनकी दोस्ती में दूरी आ जाती है और वे आपस में सही ढंग से बात करना बंद कर देते हैं।
अगले दिन स्कूल में एक और घटना उनके रिश्ते को और बिगाड़ देती है। शिक्षक आलोक को क्लास मॉनिटर बना देते हैं। मॉनिटर का काम होता है कक्षा में अनुशासन बनाए रखना और शिक्षक की सहायता करना। शुरू में आलोक को यह जिम्मेदारी मिलकर गर्व होता है, लेकिन धीरे-धीरे वह इसका दुरुपयोग करने लगता है। वह दूसरों पर हुक्म चलाने लगता है, छोटी-छोटी बातों की शिकायत करता है और खुद को सबसे ऊपर समझने लगता है। उसका व्यवहार मददगार के बजाय बॉस जैसा हो जाता है। जावेद को लगता है कि आलोक क्रिकेट मैच की नाराज़गी निकालने के लिए मॉनिटर की शक्ति का गलत उपयोग कर रहा है। इसलिए जावेद और ज्यादा नाराज़ हो जाता है और आलोक से बात नहीं करता।
कुछ दिनों बाद शिक्षक जावेद को किसी गतिविधि का मॉनिटर बना देते हैं। अब जावेद के पास भी वही अधिकार आ जाता है जो पहले आलोक के पास था। पहले तो जावेद को मन में बदला लेने का विचार आता है। वह सोचता है कि आलोक को भी वैसा ही अपमानित करेगा जैसा उसे सहना पड़ा था। लेकिन जैसे ही वह मॉनिटर का काम शुरू करता है, उसे याद आता है कि अन्यायपूर्ण व्यवहार कितना दुख देता है। वह समझ जाता है कि बदला लेने से वह भी गलत होगा। इसलिए वह अपने अधिकार का सही उपयोग करता है। वह बच्चों से सभ्यता से बात करता है, मदद करता है और बिना घमंड के अपनी जिम्मेदारी निभाता है।
आलोक यह सब देखता है और शर्म महसूस करता है। उसे एहसास होता है कि उसने मॉनिटर बनकर शक्ति का गलत इस्तेमाल किया था। जावेद का निष्पक्ष और शांत व्यवहार आलोक के लिए एक आईना बन जाता है। वह जावेद से मिलकर सच्चे दिल से माफी माँगता है और अपनी गलती मान लेता है। जावेद भी उसे माफ कर देता है और दोनों की दोस्ती फिर से पहले जैसी हो जाती है। लेकिन अब उनकी दोस्ती अधिक समझदार और मजबूत बन जाती है, क्योंकि वे न्याय और जिम्मेदारी का अर्थ सीख चुके होते हैं।
कहानी हमें यह सिखाती है कि शक्ति या अधिकार मिलने पर इंसान की असली परीक्षा होती है। अगर कोई व्यक्ति अधिकार का उपयोग अहंकार या बदले के लिए करता है, तो रिश्ते टूटते हैं और दूसरों का भरोसा खत्म होता है। लेकिन अगर वह निष्पक्षता और नम्रता से काम ले, तो सम्मान मिलता है। यह कहानी यह भी बताती है कि दोस्तों के बीच छोटी गलतफहमियाँ बढ़ सकती हैं यदि हम संवाद न करें। माफी और समझदारी दोस्ती को बचाती है। “फेयर प्ले” का संदेश है कि हमें हर स्थिति में न्यायप्रिय रहना चाहिए, बदला नहीं लेना चाहिए और दूसरों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करना चाहिए।