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Chapter notes
“रेगिस्तानी जानवर” पाठ हमें यह समझाता है कि रेगिस्तान जैसे कठोर और सूखे वातावरण में भी जीवन संभव है। रेगिस्तान केवल रेत का मैदान नहीं होता, बल्कि वह ऐसा क्षेत्र है जहाँ वर्षा बहुत कम होती है। पानी की कमी के कारण यहाँ तापमान बहुत अधिक बदलता रहता है। दिन अत्यधिक गर्म होते हैं और रातें बहुत ठंडी। ऐसे स्थानों पर पौधे कम उगते हैं और जल-स्रोत मुश्किल से मिलते हैं। इसलिए रेगिस्तान में रहने वाले जानवरों को पानी बचाने, गर्मी से बचने और भोजन ढूँढने के लिए विशेष शारीरिक बनावट और व्यवहार विकसित करने पड़ते हैं। यह अध्याय इन्हीं अनुकूलनों को सरल उदाहरणों के साथ बताता है और दिखाता है कि प्रकृति हर कठिन परिस्थिति में भी जीवन को बनाए रखने के रास्ते ढूँढ लेती है।
पाठ में सबसे प्रसिद्ध रेगिस्तानी जानवर ऊँट के बारे में बताया गया है, जिसे “रेगिस्तान का जहाज़” कहा जाता है। ऊँट की बनावट रेगिस्तान के लिए बिल्कुल उपयुक्त है। उसकी लंबी टाँगें उसे गर्म रेत से ऊपर रखती हैं, जिससे उसके शरीर में कम गर्मी पहुँचती है। उसके पैर चौड़े, चपटे और गद्देदार होते हैं, इसलिए वह ढीली रेत में धँसता नहीं। रेत-आँधी से बचने के लिए उसकी आँखों पर लंबी पलकों की परत होती है, मोटी भौंहें होती हैं और वह अपनी पलकों को कसकर बंद कर सकता है। उसकी नथुनियाँ भी बंद हो सकती हैं ताकि धूल अंदर न जाए। कई लोग मानते हैं कि ऊँट कूबड़ में पानी रखता है, लेकिन पाठ स्पष्ट करता है कि ऊँट के कूबड़ में पानी नहीं बल्कि चर्बी जमा होती है। जब भोजन नहीं मिलता, तो यही चर्बी ऊर्जा में बदलती है और ऊँट लंबे समय तक जीवित रह सकता है। ऊँट एक बार में बहुत पानी पी सकता है और फिर कई दिनों तक बिना पानी के रह सकता है, क्योंकि उसके शरीर से पसीना बहुत कम निकलता है और वह पानी की बर्बादी रोकता है।
इसके बाद पाठ छोटे स्तनधारी जानवरों जैसे रेगिस्तानी चूहे और चूहियों की बात करता है। ये जानवर दिन की तेज़ गर्मी से बचने के लिए गहरे बिलों में रहते हैं। जमीन के भीतर का तापमान सतह की तुलना में ठंडा और स्थिर होता है। इसलिए ये जीव दिन में बिलों में आराम करते हैं और रात के समय बाहर निकलते हैं, जब मौसम ठंडा होता है। इनके शरीर पानी बचाने में बहुत सक्षम होते हैं। ये बहुत गाढ़ा मूत्र बनाते हैं, जिससे शरीर से बहुत कम पानी बाहर जाता है। कई बार इन्हें पानी पीने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती, क्योंकि ये अपने भोजन—बीजों और सूखे पौधों—से ही पर्याप्त नमी प्राप्त कर लेते हैं। इस कारण वे लगभग बिना पानी वाले वातावरण में भी जीवित रह पाते हैं।
रेगिस्तान में सरीसृप जैसे साँप और छिपकलियाँ भी खूब पाई जाती हैं। उनकी सूखी और पपड़ीदार त्वचा पानी के वाष्पीकरण को रोकती है, इसलिए शरीर की नमी सुरक्षित रहती है। ये जानवर दिन की गर्मी में पत्थरों के नीचे या रेत में छिप जाते हैं और सुबह-शाम या रात में सक्रिय होते हैं। कुछ छिपकलियाँ और साँप रेत के रंग जैसे दिखते हैं, जिससे वे आसानी से छिप जाते हैं। यह रंग-छलावरण उन्हें शत्रुओं से बचाता है और शिकार पकड़ने में भी मदद करता है। क्योंकि रेगिस्तान में भोजन श्रृंखला छोटी होती है, इसलिए इन जानवरों को फुर्ती से शिकार करना और सावधानी से बचना पड़ता है।
कीड़े-मकोड़े और अन्य छोटे जीव भी रेगिस्तान में जीवित रहने के लिए विशेष उपाय अपनाते हैं। कई कीड़ों के शरीर पर कठोर बाहरी आवरण होता है, जो पानी को बाहर निकलने से रोकता है। कुछ कीड़े अधिकतर समय जमीन के अंदर या किसी छाया में छिपे रहते हैं और केवल अनुकूल समय में बाहर आते हैं। मकड़ियाँ, भृंग (बीटल) और अन्य छोटे जीव लंबे समय तक बिना पानी के रह सकते हैं, क्योंकि उनका शरीर नमी को बचाकर रखता है और गर्मी सहने के लिए तैयार होता है। पाठ यह बताता है कि रेगिस्तान में रहने वाला हर जीव, चाहे कितना भी छोटा हो, पानी बचाने और गर्मी से बचने की कोई न कोई रणनीति रखता है।
अंत में यह अध्याय दो मुख्य बातें सिखाता है। पहली, किसी भी क्षेत्र का वातावरण उसके पारिस्थितिकी तंत्र को बनाता है, और वहाँ के जीव उसी के अनुसार ढलते हैं। दूसरी, अनुकूलन जीवन की सबसे बड़ी विशेषता है। कठिन परिस्थितियों में जीव अपने शरीर और व्यवहार में बदलाव करके भी जीना सीखते हैं। “रेगिस्तानी जानवर” पाठ बच्चों में प्रकृति और जैव-विविधता के प्रति सम्मान पैदा करता है और दिखाता है कि प्रकृति कितनी संतुलित और बुद्धिमान है, चाहे बाहर से रेगिस्तान कितना भी सूखा और खाली क्यों न दिखे।