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Summary
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Chapter notes
“वोकेशन” एक भावनात्मक और मासूम कविता है जिसमें एक बच्चे की स्वतंत्रता की चाह दिखाई गई है। यह कविता एक स्कूल जाने वाले बच्चे की दृष्टि से लिखी गई है। बच्चा रोज़ अपने आसपास काम करने वाले लोगों को देखता है और उसे लगता है कि उनकी जिंदगी उसकी जिंदगी से कहीं ज्यादा मज़ेदार और आज़ाद है। बच्चा स्कूल या परिवार का विरोध नहीं कर रहा, बल्कि वह बचपन की स्वाभाविक इच्छा प्रकट कर रहा है—नियमों और समय-सारिणी से मुक्त होकर जीने की। इस तरह कविता बच्चों की सोच और उनके सपनों को बहुत स्नेह से सामने रखती है।
कविता तीन पदों (stanzas) में बंटी हुई है और हर पद में बच्चा एक अलग काम करने वाले व्यक्ति को देखकर वैसा बनने की इच्छा करता है। पहले पद में बच्चा सुबह स्कूल जाते समय एक फेरीवाले (hawker) को देखता है। फेरीवाला सड़क पर आज़ादी से घूमता है और ऊँची आवाज़ में “चूड़ियाँ, काँच की चूड़ियाँ!” कहकर बेचता है। बच्चे को लगता है कि फेरीवाले पर कोई जल्दी नहीं करता। वह जिस रास्ते चाहे जा सकता है, जहाँ चाहे रुक सकता है और उसे किसी निश्चित समय पर घर लौटने की मजबूरी नहीं है। बच्चा अपनी जिंदगी से तुलना करता है—उसे निश्चित रास्ते से स्कूल जाना होता है, समय पर पहुँचना पड़ता है, अनुशासन में रहना पड़ता है और तय समय पर घर लौटना पड़ता है। उसके लिए नियम हैं कि वह कितनी देर बाहर रह सकता है और कहाँ जा सकता है। इसलिए फेरीवाले की इस आज़ादी को देखकर बच्चा इच्छा करता है कि काश वह भी फेरीवाला होता, ताकि वह पूरा दिन बिना रोक-टोक घूम सके और अपनी मर्जी से समय बिता सके।
दूसरे पद में बच्चा एक माली (gardener) को बगीचे में काम करते हुए देखता है। माली मिट्टी खोदता है, पौधे लगाता है और शांत तरीके से अपने काम में लगा रहता है। बच्चे को माली का यह काम बहुत आकर्षक लगता है। उसे लगता है कि माली प्रकृति के बीच खुली हवा में काम करता है और उसे कपड़े गंदे करने की चिंता नहीं होती। वह मिट्टी और धूल में सना रहता है, फिर भी कोई उसे डाँटता नहीं। इसके उलट बच्चे को अपने कपड़ों की सफाई का ध्यान रखना पड़ता है। अगर उसके कपड़े गंदे हो जाएँ तो घर पर उसे डाँट पड़ सकती है। बच्चा यह भी महसूस करता है कि माली का काम एक तरह से आनंददायक है क्योंकि वह मिट्टी में हाथ डालकर जीवन उगाता है। इसलिए बच्चा सपना देखता है कि वह माली बन जाए, ताकि वह भी अपनी मर्जी का काम कर सके और उसे कोई रोक-टोक या डाँट न दे।
तीसरे पद में रात का दृश्य आता है। जब अंधेरा हो जाता है, तो बच्चे की माँ उसे सोने के लिए भेज देती है। उसे तय समय पर बिस्तर पर जाना पड़ता है। लेकिन खिड़की से वह एक चौकीदार (watchman) को देखता है जो लालटेन लेकर सड़क पर इधर-उधर घूम रहा है। बच्चा चौकीदार को साहसी और स्वतंत्र मानता है। चौकीदार को जल्दी सोने की मजबूरी नहीं है। वह पूरी रात जागकर अकेला चलता है और अंधेरी गलियों में घूमता है। बच्चे को यह दृश्य बहुत रोमांचक और आज़ाद लगता है। इसलिए वह भी चौकीदार बनने की इच्छा करता है ताकि वह रात में जाग पाए, घूम पाए और उसे सोने के लिए मजबूर न किया जाए।
इन तीनों इच्छाओं को एक साथ देखें तो कविता का मुख्य संदेश स्पष्ट हो जाता है। बच्चा वास्तव में स्वतंत्रता चाहता है। उसे लगता है कि बड़े लोग अपनी मर्जी से समय बिताते हैं और उनके ऊपर नियमों का बोझ नहीं होता। बच्चा इन पेशों की कठिनाइयों को नहीं समझता। फेरीवाले को दिन भर मेहनत करनी पड़ती है, माली धूप-बारिश में काम करता है और चौकीदार ठंडी-गर्मी में अकेले रात भर जागता है। लेकिन बच्चा केवल उनकी आज़ादी देखता है—घूमने की, गंदे कपड़े पहनने की और देर तक जागने की। यह बाल-मन की सच्चाई है कि वह बाहरी चमक देखकर जीवन को आसान समझ लेता है।
कविता यह भी बताती है कि बचपन की कल्पनाएँ कितनी मासूम और सुंदर होती हैं। बच्चा अपनी दिनचर्या से थोड़ा थक जाता है और बाहर की दुनिया में वह एक ऐसी आज़ादी देखता है जो उसे अपने लिए चाहिए। कवि बच्चे की इच्छाओं को गलत नहीं ठहराता बल्कि प्यार से प्रस्तुत करता है। यह पाठक को यह समझने का अवसर देता है कि बच्चों की भावनाओं को समझना जरूरी है। उन्हें केवल “बेवकूफी” कहकर टाला नहीं जाना चाहिए।
अंत में “वोकेशन” यह सीख देती है कि स्वतंत्रता हर इंसान की इच्छा होती है, लेकिन हर काम के साथ जिम्मेदारी भी जुड़ी होती है। बच्चे को यह धीरे-धीरे समझना होगा कि जिन नौकरियों को वह आज़ादी मान रहा है, उनमें भी संघर्ष और मेहनत छिपी है। साथ ही यह कविता बड़ों को याद दिलाती है कि उन्होंने भी बचपन में ऐसे ही सपने देखे होंगे। इस तरह कविता स्वतंत्रता, जिम्मेदारी और बचपन की कल्पनाशीलता का सुंदर चित्र बन जाती है।