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Summary
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Chapter notes
“व्हॉटइफ” एक मज़ेदार लेकिन बहुत गहरी सीख देने वाली कविता है। यह कविता एक बच्चे के मन में उठने वाली चिंताओं और डर को दिखाती है। कविता बताती है कि जब कल्पना और चिंता मिल जाती है, तब दिमाग ऐसी-ऐसी बातें सोचने लगता है जो वास्तव में होती ही नहीं, पर फिर भी डर पैदा कर देती हैं। कविता बच्चे की आवाज़ में लिखी गई है और “What if…?” यानी “अगर ऐसा हो गया तो?” जैसे बार-बार दोहराए गए सवालों के माध्यम से यह दिखाती है कि चिंता कैसे एक के बाद एक नए डर पैदा करती जाती है। सरल भाषा और हल्के हास्य के साथ कविता हमें यह समझाती है कि कई बार हमारे डर वास्तविक नहीं होते, बल्कि हमारी सोच उन्हें बड़ा बना देती है।
कविता की शुरुआत से पता चलता है कि बच्चा रात में बिस्तर पर लेटा है और उसकी नींद नहीं आ रही। रात का सन्नाटा और अंधेरा अक्सर मन को ज्यादा सोचने पर मजबूर कर देते हैं। जैसे ही आसपास सब शांत होता है, बच्चे का दिमाग “क्या होगा अगर…” की श्रृंखला शुरू कर देता है। पहले डर स्कूल और रोज़मर्रा की बातों से जुड़ा होता है। बच्चा सोचता है—“अगर मैं बस मिस कर दूँ तो?” “अगर स्कूल में देर हो जाए तो?” “अगर टीचर मुझे डाँट दें तो?” यह डर बच्चों में आम होता है, क्योंकि वे गलती करने, देर होने या अध्यापकों की नाराज़गी से डरते हैं। छोटी-सी स्थिति भी बच्चे को बड़ा खतरा लगने लगती है।
धीरे-धीरे यह चिंता बढ़ती जाती है और एक डर दूसरे डर को जन्म देता है। “अगर टीचर मुझसे नाराज़ हो जाएँ तो?” से लेकर “अगर मैं परीक्षा में फेल हो गया तो?” और फिर “अगर घर पर पापा-मम्मी गुस्सा हो जाएँ तो?” तक बच्चे का मन लगातार बुरी संभावनाएँ कल्पना में बनाता जाता है। कविता यह बहुत सुंदर तरीके से दिखाती है कि चिंता का स्वभाव कैसा होता है—वह एक जगह रुकती नहीं है। जिस तरह एक चिंगारी से आग फैलती है, वैसे ही एक छोटी चिंता कई बड़ी चिंताओं में बदल जाती है। बच्चा वास्तविक स्थिति के बजाय “सबसे बुरा क्या हो सकता है” यही सोचता रहता है।
कविता आगे बढ़ते-बढ़ते और भी अजीब व काल्पनिक डर दिखाती है। बच्चा सोचता है—“अगर कोई हरा एलियन छत पर आ जाए तो?” “अगर मेरे सिर का आकार बढ़ने लगे तो?” ऐसे डर सुनने में बहुत हास्यास्पद लगते हैं, लेकिन उनका अर्थ गंभीर है। कवि यह बताना चाहता है कि कई बार हमारा डर बिल्कुल अवास्तविक होता है, फिर भी वह हमें परेशान कर देता है। रात में जब हम अकेले होते हैं, तब दिमाग कल्पना में डरावनी कहानियाँ बना लेता है। चिंता हमेशा तर्क से नहीं चलती; वह कल्पना में कुछ भी जोड़ सकती है। यही कारण है कि बच्चे के डर कभी वास्तविक और कभी पूरी तरह काल्पनिक बन जाते हैं।
कविता का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा उसका अंत है। इतनी सारी चिंताओं के बाद बच्चा एकदम से कहता है—“So what?” यानी “तो क्या हुआ?” यह छोटा-सा वाक्य पूरी कविता का संदेश बदल देता है। यह दिखाता है कि बच्चा अब अपने डर के आगे झुकने की जगह उसे चुनौती दे रहा है। कवि का मतलब है कि डर तभी तक बड़ा होता है जब तक हम उसे बार-बार सोचते रहते हैं। जैसे ही हम कह देते हैं “तो क्या?”, डर कमजोर हो जाता है। इस अंत से यह सीख मिलती है कि बहादुरी डर न होने का नाम नहीं, बल्कि डर होने पर भी उसे नियंत्रित करने का नाम है।
इस कविता से बच्चों को यह समझ मिलती है कि जरूरत से ज्यादा चिंता करने से समस्याएँ हल नहीं होतीं, बल्कि मन और भी परेशान हो जाता है। जो समस्याएँ सच में आएँगी, उन्हें हम उस समय संभाल सकते हैं। पहले से डरकर बैठ जाना बेकार है। अधिकतर “What if” वाले डर कभी सच नहीं होते। कविता यह भी बताती है कि बच्चों की छोटी-सी चिंता भी उनके लिए बहुत बड़ी लग सकती है, इसलिए उन्हें समझ और सहारे की जरूरत होती है।
कुल मिलाकर “व्हॉटइफ” चिंता और ओवरथिंकिंग पर आधारित कविता है। यह हमें बताती है कि डर हमारी सोच से पैदा होता है और सोच बदलकर हम डर को कम कर सकते हैं। कविता का अंतिम संदेश बहुत साफ है—काल्पनिक डर को मन पर हावी मत होने दो, आत्मविश्वास रखो, समस्याओं का सामना तभी करो जब वे सच में आएँ, और वर्तमान को बिना डर के जीयो।