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Chapter notes
“तानसेन” एक प्रेरणादायक जीवन-कथा है जो भारत के महानतम शास्त्रीय गायकों में से एक तानसेन के बचपन, उनके प्रशिक्षण और उनकी प्रसिद्धि की यात्रा को सरल भाषा में प्रस्तुत करती है। यह पाठ विद्यार्थियों को भारतीय संगीत की गौरवशाली परंपरा से जोड़ता है और यह समझाता है कि प्रतिभा केवल जन्मजात नहीं होती; उसे गुरु, अनुशासन और निरंतर अभ्यास से निखारना पड़ता है। कहानी गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व को भी दर्शाती है और बताती है कि सच्ची महानता विनम्रता, मेहनत और कला के प्रति समर्पण से आती है।
कहानी की शुरुआत तानसेन के बचपन से होती है। वह ग्वालियर के पास बेहट नामक गाँव में रहता है। उसके पिता मुकुंद मिश्र एक कवि और गायक हैं, इसलिए संगीत का वातावरण उसे घर से ही मिलता है। तानसेन बचपन में बहुत शरारती था। वह अपने दोस्तों के साथ जंगल में घूमता रहता और राहगीरों को डराने के लिए तरह-तरह की शरारतें करता। लेकिन उसकी शरारत के पीछे एक अद्भुत गुण छिपा था—वह पक्षियों और जानवरों की आवाज़ों की सटीक नकल कर सकता था। उसकी नकल इतनी वास्तविक होती थी कि लोग धोखा खा जाते और सोचते कि सचमुच कोई जानवर पास में है। यही गुण उसकी संगीत प्रतिभा का पहला संकेत बनता है।
एक दिन तानसेन और उसके दोस्त जंगल में यात्रा कर रहे लोगों को डराने का विचार करते हैं। तानसेन झाड़ियों में छिपकर बाघ की तेज़ और भयानक दहाड़ निकालता है। उसकी दहाड़ इतनी असली लगती है कि यात्री घबरा जाते हैं। उन्हीं यात्रियों में स्वामी हरिदास भी होते हैं, जो एक प्रसिद्ध संत और महान संगीतज्ञ हैं। स्वामी हरिदास डरते नहीं, बल्कि समझ जाते हैं कि यह दहाड़ किसी मानव बच्चे ने निकाली है। वे तानसेन को बाहर बुलाते हैं। तानसेन सामने आता है तो स्वामी हरिदास उसकी आवाज़ की कला से प्रभावित होते हैं। वे कहते हैं कि इतनी बड़ी प्रतिभा को शरारतों में नहीं गँवाना चाहिए। वे तानसेन के पिता को समझाते हैं कि बच्चे को संगीत शिक्षा दी जानी चाहिए, और वे स्वयं उसे शिष्य रूप में स्वीकार करते हैं। इस तरह तानसेन स्वामी हरिदास का शिष्य बन जाता है।
स्वामी हरिदास के मार्गदर्शन में तानसेन की जीवन-दिशा बदल जाती है। स्वामी हरिदास अनुशासनप्रिय लेकिन दयालु गुरु हैं। वे तानसेन को शास्त्रीय संगीत की बारीकियाँ सिखाते हैं। तानसेन घंटों अभ्यास करता है, सुर, ताल और रागों की गहराई को समझता है। धीरे-धीरे उसकी गायकी में मधुरता और गंभीरता आ जाती है। पाठ यह स्पष्ट करता है कि तानसेन की महानता केवल प्राकृतिक प्रतिभा से नहीं बनी; उसे गुरु की शिक्षा और कड़ी मेहनत ने महान बनाया। यही भाग बच्चों को निरंतर अभ्यास और सही गुरु के महत्व की शिक्षा देता है।
पिता की मृत्यु के बाद तानसेन आगे संगीत सीखने के लिए ग्वालियर के ही एक प्रसिद्ध सूफी संगीतज्ञ मोहम्मद गौस के पास जाता है। वहाँ उसका प्रशिक्षण और भी परिपूर्ण होता है। उसकी गायकी की ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगती है। वह कई दरबारों में गाता है और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता है। अंततः उसकी प्रसिद्धि मुगल सम्राट अकबर तक पहुँचती है। अकबर कला-प्रेमी सम्राट हैं और तानसेन को अपने दरबार में बुलाते हैं। तानसेन दरबार में पहुँचता है तो अकबर उसे सम्मानपूर्वक अपनाते हैं और नौ रत्नों (नवरत्नों) में स्थान देते हैं। तानसेन अकबर के सबसे प्रिय गायक बन जाते हैं।
कहानी में एक प्रसिद्ध घटना भी आती है जो तानसेन की कला की चमत्कारी शक्ति और उसकी सावधानी दोनों को दिखाती है। अकबर तानसेन से राग दीपक गाने की इच्छा व्यक्त करते हैं। लोककथा के अनुसार राग दीपक गाने से आग और गर्मी उत्पन्न हो सकती है, इसलिए यह खतरनाक माना जाता था। तानसेन पहले मना करता है और बताता है कि यह राग गाने से गायक स्वयं जल सकता है, जब तक उसे राग मेघ से संतुलित न किया जाए। अकबर के आग्रह पर तानसेन तैयार हो जाता है, लेकिन कहता है कि उसकी बेटी और शिष्या पहले राग मेघ सीखें। तानसेन राग दीपक गाता है तो चारों ओर ज्वालाएँ उठती हैं। तुरंत उसकी बेटी और शिष्या राग मेघ गाती हैं, बारिश होती है और आग बुझ जाती है। तानसेन बच तो जाता है, लेकिन थक कर बीमार पड़ जाता है। यह प्रसंग तानसेन की महानता, संगीत की शक्ति और जिम्मेदारी का संदेश देता है।
कुल मिलाकर “तानसेन” एक ऐसी कहानी है जो प्रतिभा, गुरु-शिष्य परंपरा, मेहनत और भारतीय संगीत की गरिमा को उजागर करती है। यह विद्यार्थियों को प्रेरित करती है कि वे अपनी कला या पढ़ाई को पूरी लगन से सीखें, अच्छे मार्गदर्शक का सम्मान करें और समझें कि सफलता का रास्ता अभ्यास, धैर्य और विनम्रता से होकर जाता है। तानसेन का जीवन यह सिखाता है कि जन्मजात गुण तभी महान बनते हैं जब उन्हें अनुशासन और सच्चे प्रयास से सँवारा जाए।