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Chapter notes
“अ पैक्ट विद द सन” एक भावनात्मक और कल्पनाशील कहानी है जो बच्चे के प्रेम, आशा और प्रकृति की उपचार शक्ति को दर्शाती है। यह पाठ साईदा नाम की एक छोटी लड़की और उसकी बीमार माँ “अम्माँ” की कहानी है। इसमें वास्तविकता और कल्पना दोनों का सुंदर मेल है। कहानी यह सिखाती है कि धूप और ताज़ी हवा स्वास्थ्य के लिए बहुत ज़रूरी हैं, और अंधविश्वास या गलत सलाह बीमारी को बढ़ा सकती है। साईदा की मासूम हिम्मत और विश्वास अंत में उसकी माँ को ठीक कर देते हैं।
कहानी की शुरुआत साईदा की माँ के गंभीर रूप से बीमार होने से होती है। अम्माँ को ज्वर, खाँसी, शरीर और जोड़ों में दर्द रहता है। गाँव के कई नीम-हकीम और झोलाछाप डॉक्टर उनका इलाज करते हैं, पर कोई फायदा नहीं होता। ये लोग पुराने अंधविश्वासी विचारों पर चलते हैं। वे अम्माँ को पौष्टिक भोजन बंद करने को कहते हैं, उसे बंद कमरे में रहने की सलाह देते हैं और धूप तथा ताजी हवा से बचने को कहते हैं। उन्हें लगता है कि खुली हवा और धूप बीमारी को बढ़ा देंगी। अम्माँ मजबूरी में उनकी बातें मान लेती है, पर उसकी हालत और बिगड़ जाती है। उसका शरीर कमजोर हो जाता है और उसका चेहरा पीला पड़ने लगता है। साईदा यह सब देखती है और दुखी होती है, पर वह हार नहीं मानती।
आस-पास के लोग तरह-तरह की निराशाजनक बातें करते हैं और साईदा से कहते हैं कि अब कोई उपाय नहीं है। लेकिन साईदा को लगता है कि जीवन धन से ज्यादा कीमती है। वह साहस करके एक असली विशेषज्ञ डॉक्टर को बुलाने का निर्णय लेती है। डॉक्टर की फीस जुटाने के लिए वह अम्माँ के कुछ गहने बेच देती है। विशेषज्ञ डॉक्टर अम्माँ को अच्छे से देखता है और बिलकुल अलग सलाह देता है। वह कहता है कि अम्माँ को पौष्टिक भोजन चाहिए ताकि शरीर में ताकत आए, और सबसे जरूरी बात वह यह बताता है कि अम्माँ को ताज़ी हवा और धूप चाहिए। डॉक्टर समझाता है कि धूप शरीर को गर्मी, ऊर्जा और जीवन देती है, और यह प्राकृतिक दवा की तरह काम करती है। वह साईदा से कहता है कि अम्माँ को बंद कमरे से निकालकर ऐसे बड़े कमरे में लाओ जहाँ दरवाजे और खिड़कियाँ खुली रहें। साथ ही वह सलाह देता है कि अम्माँ रोज सुबह आठ से नौ बजे तक धूप में बैठें, क्योंकि इस समय की धूप सबसे लाभकारी होती है। इस सलाह से साईदा को आशा मिलती है और अम्माँ भी डॉक्टर पर भरोसा करने लगती है।
जब साईदा डॉक्टर की बात मानकर अम्माँ को धूप में बैठाने की कोशिश करती है, तब कुछ पड़ोसी विरोध करते हैं। वे कहते हैं कि धूप खतरनाक है और अम्माँ को अंदर ही रहना चाहिए। लेकिन साईदा दृढ़ रहती है। वह अम्माँ को खिड़की के पास ले आती है और रोज धूप का इंतजार करती है। दुर्भाग्य से कई दिनों तक बादल छाए रहते हैं और धूप नहीं निकलती। अम्माँ उदास हो जाती है। वह कहती है कि शायद सूरज भी उसे छोड़ गया है और अब वह कभी ठीक नहीं होगी। साईदा अपनी माँ को दिलासा देती रहती है। इसी बीच कहानी अचानक कल्पना की दुनिया में चली जाती है।
कहानी में सूरज की किरणों को छोटे-छोटे बच्चों जैसा दिखाया गया है जो धरती पर जाने के लिए उत्सुक हैं। लेकिन सूर्य कहता है कि आज छुट्टी है और बादलों ने रास्ता रोक रखा है, इसलिए किरणें नहीं जा सकतीं। तभी एक किरण को साईदा का वचन याद आता है। साईदा ने उससे प्रार्थना की थी कि वह अगली सुबह धूप लेकर जरूर आए ताकि उसकी माँ ठीक हो सके। किरण ने साईदा से वादा किया था। अब वह किरण वचन निभाने के लिए दृढ़ हो जाती है। वह सूर्य से कहती है कि उसे जाना ही होगा क्योंकि एक बीमार अम्माँ को उसकी जरूरत है। सूर्य मना करता है, लेकिन किरण अपने सम्मान और जिम्मेदारी की भावना से बादलों को चीरने का निश्चय करती है। वह दूसरी किरणों को भी साथ लेती है और सारी किरणें मिलकर अपनी गर्मी केंद्रित करती हैं। बादल छँट जाते हैं और धूप धरती तक पहुँच जाती है।
धरती पर साईदा देखती है कि दोपहर बाद कुछ जगहों पर पीली धूप दिखाई देने लगी है। वह तुरंत अम्माँ को बाहर ले जाती है। लोग फिर मना करते हैं कि यह धूप देर की है और नुकसान करेगी, पर साईदा उनकी बात नहीं मानती क्योंकि उसे अपनी माँ की जरूरत ज्यादा दिखती है। अम्माँ धूप में बैठती हैं, ताज़ी हवा लेती हैं और उन्हें राहत मिलती है। अगले दिनों में धूप नियमित आने लगती है और डॉक्टर की सलाह का चमत्कारी असर दिखता है। अम्माँ का पीला चेहरा चमकने लगता है, शरीर में ताकत लौट आती है और वह धीरे-धीरे पूरी तरह ठीक हो जाती है।
कहानी का अंत अम्माँ के स्वस्थ होने से होता है। साईदा की आशा, प्यार और हिम्मत सफल होती है। इस पाठ की सीख बहुत स्पष्ट है—अंधविश्वास और गलत सलाह बीमारी को बढ़ाते हैं, जबकि सही चिकित्सा, धूप और ताज़ी हवा जैसी प्राकृतिक चीजें स्वास्थ्य लौटाती हैं। कहानी यह भी सिखाती है कि वचन निभाना और उम्मीद बनाए रखना बहुत जरूरी है। साईदा का “सूरज से समझौता” हमें बताता है कि जो लोग विश्वास और प्रयास के साथ आगे बढ़ते हैं, प्रकृति भी उनका साथ देती है।